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Shri Ram Janm Katha: भगवान राम की पूरी जन्म कथा,जानिए

Shri Ram Janm Katha

Shri Ram Janm Katha : भगवान राम , भगवान विष्णु जी के सातवें अवतार थे जिनका जन्म त्रेता युग में अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के घर हुआ था। श्री राम ‘इक्ष्वाकु वंश ’ से संबंधित हैं जिसे राजा ‘इक्ष्वाकु’ जो भगवान सूर्य के पुत्र थे, उनके द्वारा स्थापित किया गया था, इसी वजह से रामचंद्र जी को ‘सूर्यवंशी राजा’ कहा जाता है। भगवान राम हिंदू धर्म के एक प्रमुख देवता हैं। एक शाही परिवार में जन्मे भगवान राम के जीवन को अप्रत्याशित परिस्थितियों जैसे 14 साल के वनवास और कई नैतिक दुविधाओं और नैतिक सवालों से आजीवन चुनौती का सामना करना पड़ा।

श्री राम जी के रूप में विष्णु जी का मानव अवतार हुआ और उन्होंने जो कष्टों का सामना किया उससे साबित होता है कि सतोगुण विष्णु जन्म और मृत्यु के चक्र में हैं। वह शाश्वत नहीं है। एक समय में भगवान विष्णु अपने निवास स्थान ‘वैकुंठ’ में शेषनाग की शैय्या पर विश्राम करते हैं तो दूसरी ओर वे पृथ्वी पर अवतार लेते हैं और मानव जन्म में दुःख भोगते हैं। श्रीमद् देवी भागवत (दुर्गा) पुराण और शिव महापुराण इस बात का प्रमाण देते हैं कि ब्रह्मा, विष्णु, शिव जन्म और पुनर्जन्म के चक्र में हैं। वे नश्वर हैं।

Shri Ram Janm Katha: भगवान विष्णु को भगवान राम के रूप में पृथ्वी पर अवतार क्यों लेना पड़ा?

नारद मुनि के श्राप के कारण भगवान विष्णु को लेना पड़ा श्रीराम का अवतार:

एक बार ऋषि नारद जी ने घोर तपस्या की और उन्हें घमंड हो गया कि उन्होंने विषय विकारों पर विजय प्राप्त कर ली है। तपस्या पूरी करने के बाद वह अपने पिता भगवान ब्रह्मा से मिलने गए और उन्हें अपने उसी विश्वास से अवगत कराया। भगवान ब्रह्मा ने नारद जी से भगवान विष्णु जी से इस बारे में चर्चा नहीं करने के लिए आग्रह किया। चूँकि नारद मुनी अति आत्मविश्वास और उत्साह में थे इसलिए उन्होंने अपने पिता द्वारा दी गई चेतावनी के बावजूद विष्णु जी के साथ वह बात साझा करने की सोची अर्थात पिता की बात नहीं मानी । नारद मुनि अपने चाचा विष्णु जी से मिलने गए और शेखी बखारने लगे कि उन्होंने वासना पर विजय प्राप्त कर ली है और वे आजीवन तपस्वी का जीवन व्यतीत करेंगे। नारद मुनी के अभिमान और ग़लतफहमी को दूर करने के लिए विष्णु जी ने एक मायावी दुनिया रची जहाँ पर एक सुंदर राजकुमारी का ‘स्वयंवर’ आयोजित किया गया था और दूर-दूर के प्रसिद्ध शासक राजकुमारी से विवाह करने आए थे। ऐसा भव्य उत्सव और तैयारियों को देखकर नारद मुनी राजकुमारी से विवाह करने के लिए उत्साहित हो गए।

भगवान विष्णु का रूप मनमोहक है। नारद जी ने विष्णु जी को याद किया और उनसे उनका “हरि रूप” उन्हें प्रदान करने के लिए इच्छा ज़ाहिर की (संस्कृत में हरि का अर्थ बंदर होता है)। भगवान विष्णु ने चतुराई से ‘तथास्तु’ कहकर सहमति दी और नारद जी का चेहरा वानर की तरह परिवर्तित हो गया, जिससे नारद जी अंजान थे। ‘स्वयंवर’ का समय आ गया और राजकुमारी ने शाही दरबार में प्रवेश किया। नारद जी कतार में खड़े थे और राजकुमारी की प्रतीक्षा कर रहे थे कि वह उन्हें माला पहनाए, वह पास आई, ऋषि नारद को देख कर भी अनदेखा कर आगे की ओर चली गई। नारद मुनी चौंक गए कि ‘राजकुमारी ने उनकी उपेक्षा क्यों की’ ? दूसरा मौका देते हुए, नारद मुनि एक और पंक्ति में आगे बढ़े, जहां राजकुमारी को अगले पल पहुँचना था। दूसरी बार भी राजकुमारी ने नारद जी को नज़रअंदाज़ कर दिया, तब उनके पास खड़े किसी व्यक्ति ने नारद जी के बंदर रूप का मज़ाक उड़ाया जिससे नारद मुनी नाराज़ हो गए । नारद मुनि के इस श्राप के कारण भगवान विष्णु ने धरती पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के रूप में अवतार लिया।

भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास क्यों हुआ?

रामचंद्र जी की सौतेली माँ ‘कैकेयी’ ने अपने पति राजा दशरथ को आदेश दिया कि वह रामचंद्र जी को 14 वर्ष के लिए राजगद्दी का अपना अधिकार त्यागने और वनवास जाने का फरमान सुनाये। एक आदर्श पुत्र के रूप में रामचंद्र ने पूर्ण समर्पण के साथ अपने पिता के अनिच्छुक निर्णय को स्वीकार कर लिया और अपनी पत्नी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के लिए अयोध्या छोड़ वन की ओर प्रस्थान किया।

भगवान राम ने राजा बाली को धोखे से क्यों मारा?

शास्त्रों के अनुसार जब भगवान राम ने राजा बाली, जो इंद्र के पुत्र और अंगद के पिता थे उनको धोखा दिया था। एक पेड़ की ओट लेकर उन पर छिपकर वार किया और बाली को मार डाला क्योंकि बाली में अलौकिक शक्ति थी, अगर कोई एकल-युद्ध में उनके साथ युद्ध करता है तो सामने वाले व्यक्ति की शक्ति का आधा हिस्सा बाली में प्रवेश कर जाता था। जबकि बाली और भगवान राम दुश्मन नहीं थे। भगवान राम ने अपने स्वार्थ के कारण बाली को धोखा दिया क्योंकि बाली के भाई सुग्रीव ने अपनी पूरी वानर सेना के साथ सीता जी की खोज और वापसी में श्री राम की मदद करने का वचन दिया था। इसीलिए भगवान राम ने राजा बाली को धोखे से मारा।

भक्त, राम को दिव्य-पुरुष मानते हैं जो मानवीय और दैवीय दोनों की शक्तियों से सुसज्जित होने की मिसाल हैं। ऐसे दिव्य-मानव अर्थात श्री राम जी ने कायरतापूर्ण कार्य किया। यदि वह इतने शक्तिशाली थे तो उन्हें सामने से एक बहादुर योद्धा की तरह बाली से लड़ना चाहिए था। यह प्रकरण फिर से साबित करता है कि भगवान राम, बाली का सामना करने में असमर्थ थे। इसलिए छिपकर बाली की हत्या कर दी। इस प्रकरण में वह एक धोखेबाज़ के रूप में उभरे।

रामसेतु का निर्माण किसने किया था?

Shri Ram Janm Katha: भगवान राम की पूरी जन्म कथा,जानिए

हनुमान एक भक्त आत्मा थे। वह रामचंद्र जी द्वारा एक शांति दूत के रूप में लंका में अभिमानी शासक रावण को आत्मसमर्पण करने और सीता को राम जी को वापस लौटाने के लिए भेजे गए थे। लेकिन अहंकारी रावण ने उनकी बात को नहीं स्वीकारा और सीता को वापस करने से मना कर दिया। बाद में फिर युद्ध की यलगार हुई परन्तु अब विशाल महासागर लंका तक पहुंचने में बाधक बन गया। भगवान राम लगातार तीन दिनों तक घुटनों पानी तक महासागर में खड़े रहे और समुद्र से रास्ता देने का अनुरोध किया, लेकिन सागर ने रास्ता नहीं दिया। इससे हताश होकर भगवान श्री राम ने अग्नि बाण को उठाकर पूरे समुद्र को जला देने का प्रण लिया। तब, सागर ने ब्राह्मण का रूप धारण किया और हाथ जोड़कर श्री राम के समक्ष खड़े हो गए और क्षमा मांगी और श्री राम से कहा कि आपकी वानर सेना में जो दो भाई नल और नील हैं उनको अपने गुरु जी ऋषि मुनिंदर (सर्वशक्तिमान ईश्वर कबीर जी यानी आदि राम) की कृपा से शक्ति प्राप्त है। यदि उनके हाथों से कोई भी वस्तु जल में डाली जाएगी तो वह डूबेगी नहीं बल्कि तैर जाएगी लेकिन उन्होंने इस शक्ति को गर्व (अभिमान) हो जाने के कारण खो दिया है। अब ऋषि मुनिंदर जी ही श्री राम की मदद कर सकते हैं।

श्री राम उर्फ ​​विष्णु भी आदी राम के बच्चे हैं। उन्हें इस विषम परिस्थिति में भगवान कबीर साहेब के आशीर्वाद की आवश्यकता थी, इसलिए उन्होंने आदि राम को याद किया। परम अक्षर पुरुष कविर्देव सेतुबंध पर ऋषि मुनिंदर के रूप में प्रकट हुए और ब्रह्म-काल को दिए गए अपने वचन के अनुसार भगवान कबीर साहेब ने श्री राम की सेना के लिए रामसेतु का निर्माण किया।

ऋषि मुनिन्दर उर्फ ​​आदि राम ने पर्वत के चारों ओर एक रेखा को चिन्हित किया और अपनी सर्वोच्च शक्ति से उस रेखा के अंदर के पत्थरों को लकड़ियों की भाँति हल्का कर दिया, जो पुल का निर्माण करते समय डूबे नहीं। इस प्रकार, रामसेतु का निर्माण आदि राम की कृपा से हुआ था। इससे पूर्व श्री राम पुल का निर्माण नहीं कर सके। यहां तक ​​कि नल और नील भी असफल हो गए थे। चूंकि नल और नील वास्तुकार थे, इसलिए उन्होंने उन हल्के पत्थरों को तराशा और उन्हें एक-दूसरे के अनुकूल बनाकर जोड़ा और पूरी वानर सेना ने सेतु निर्माण के कार्य में अपना भरपूर योगदान दिया। पहचान के लिए, हनुमान जी ने उन सभी हल्के पत्थरों पर राम-राम लिख दिया और अब तक भोले भक्त यह मानते रहे कि रामसेतु का निर्माण श्री राम की कृपा से हुआ था।

गरुड़ ने श्री राम को ‘नाग-फाँस’ से कराया मुक्त कराया

श्री राम और पूरी वानर सेना ने रामसेतु पुल पार किया और लंका पहुंचे। दोनों सेनाओं के बीच युद्ध शुरू हो गया और श्री राम की सेना पर ‘नाग-फाँस’ नामक एक हथियार से वार किया गया, जिसके परिणामस्वरूप श्री राम, लक्ष्मण, हनुमान, सुग्रीव, जामवंत, अंगद सहित सभी सैनिकों का पूरा शरीर नागों द्वारा बांध दिया गया और वे निष्क्रिय हो गए। गरुड़ जी को मदद के लिए याद किया गया जिसने सभी नागों को मार दिया। तब पूरी सेना और श्री राम बंधन से मुक्त हुए।

Shri Ram Janm Katha : श्री राम ने रावण का वध कैसे किया?

रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। रावण ने दस बार शिव जी को अपना सिर काट कर चढ़ाया और दस बार ही शिव जी ने रावण को उसका शीश लौटा दिया था और उसे आशीर्वाद दिया कि, ‘आप दस बार सिर कटने के उपरान्त ही मर सकेंगे।’ रावण को मारना मुश्किल था क्योंकि रावण को नाभि में अमृत होने का वरदान मिला हुआ था। कहा जाता है कि रावण अत्यधिक शक्तिशाली था और उसने 33 करोड़ देवी-देवताओं को भी कैद कर लिया था। सीता को रावण की जेल से मुक्त कराने के लिए, श्री राम और रावण के बीच युद्ध हुआ लेकिन राम-रावण को नहीं मार सके। तब, विभीषण ने श्री राम जी से कहा कि रावण की नाभि में तीर लगने पर ही रावण का वध हो सकता है लेकिन रामचंद्र के सारे प्रयास व्यर्थ गए। फिर, रामचंद्र जी ने सर्वोच्च भगवान कबीर साहेब जी का आह्वान किया। आदि राम (कबीर साहेब जी) ने गुप्त रूप में रामचंद्र के हाथों पर हाथ रखा और रावण की नाभि में तीर मारा। इस तरह आदि राम की कृपा से रावण मारा गया।

भगवान राम ने सीता की अग्नि परीक्षा क्यों ली?

युद्ध समाप्त हो गया, रावण मारा गया और सीता जी को रावण की कैद से छुड़ा लिया गया। जब सीता जी वापस लौटीं तो श्री रामचंद्र जी ने सीता जी की अग्नि परीक्षा ली, यह क्रिया कई लोगों की उपस्थिति में हुई। सीता जी अग्नि परीक्षा में सफल हुईं। तब, भगवान राम ने सीता जी को स्वीकार किया और रावण के विमान में लक्ष्मण और हनुमान के साथ अयोध्या वापस लौट आए।

एक दिन जब राम अयोध्या में विचरण कर रहे थे, तब उन्होंने एक धोबी को अपनी पत्नी के साथ झगड़ा करते सुना, क्योंकि वह अपने पति की सहमति के बिना घर छोड़कर चली गई थी। धोबी ने अपनी पत्नी को यह कहते हुए स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि ”वह श्री राम जैसा मूर्ख नहीं है जिसने सीता को बारह वर्ष तक लंका में अपने पति (राम) के बिना अन्य व्यक्ति (रावण) के साथ रहने के बावजूद भी स्वीकार किया।‘ ऐसे शब्द सुनकर राम शर्मिंदा हो गए और वापस महल में आकर राम जी ने लक्ष्मण जी को पूरी बात बताई कि नगरवासी सीता की पतिव्रता होने के बारे में कैसे गपशप कर रहे हैं। इस घटना ने श्री राम जी को व्याकुल कर दिया। उन्होंने तुरंत ही सीता जी को महल में बुलाया। सीता जी उस वक़्त गर्भवती थी लेकिन राम जी ने इस पर कोई भी विचार नहीं किया और सीता जी को महल से निष्कासित कर दिया। सीता जी द्वारा कई बार विनती करने के बाद भी राम जी ने कोई मानवीय व्यवहार (संवेदनशीलता) नहीं दिखाया। इस घटना के उपरान्त सीता जी ने अपना शेष जीवन वनवास में व्यतीत किया। भगवान राम ने यह कहते हुए सभा छोड़ दी कि ‘मैं आलोचना का विषय नहीं बनना चाहता। मेरा वंश कलंकित हो जाएगा।‘

रामायण के अंत में सीता का क्या हुआ?

सीता जी के अयोध्या छोड़ने के बाद उन्होंने ऋषि वाल्मीकि जी के आश्रम में शरण ली, जहाँ उन्होंने लव नामक एक पुत्र को जन्म दिया। एक बार सीता जी अपने पुत्र लव के साथ किसी काम के लिए आश्रम से बाहर गई थीं लेकिन ऋषि वाल्मीकि इस बात से अनभिज्ञ थे। ऋषि जी ने सोचा कि लव कहीं खो गया है और इस डर से कि वह सीता को क्या बताएँगे जब वह आश्रम लौटेगी और लव के बारे में पूछेगी; उन्होंने अपनी शक्ति से ‘कुशा घास’ से एक लड़का बना दिया। इस तरह, लव और कुश राम और सीता के दो पुत्र बन गए लेकिन श्री राम इस बात से पूरी तरह से अनभिज्ञ थे।

एक बार श्री रामचंद्र जी ने अपने वर्चस्व को साबित करने के लिए ‘अश्वमेघ यज्ञ’ का आयोजन किया। उनके पुत्रों लव और कुश ने यज्ञ के उस घोड़े को बांध दिया और श्री राम को युद्ध के लिए ललकारा। श्री राम अनभिज्ञ थे कि लव और कुश उनके पुत्र हैं। श्री राम और लव-कुश का युद्ध हुआ और श्री राम को अपने ही बेटों के हाथों हार का सामना करना पड़ा। जब सीता को यह पता चला तो वह बहुत दुःखी हो गईं और उन्होंने श्री राम को देखने से भी इनकार कर दिया। दुःख में सीता जी ने पृथ्वी में प्रवेश किया और अपना जीवन समाप्त कर लिया। इस पश्चाताप में श्री राम ने अयोध्या के पास सरयू नदी में जल समाधि’ लेकर अपना जीवन समाप्त किया। श्री राम और सीता जी दोनों ने दयनीय जिंदगी बिताई और दोनों की मृत्यु भी बेहद दर्दनाक थी।

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